Saturday, 7 December 2013

कश्मीर के विस्थापित हिन्दू

21 साल बाद भी घाटी से विस्थापित कश्मीरी पंडितों के दर्द पर मुफीद मरहम नहीं रखा जा सका है.
जन्मभूमि किसे प्यारी नहीं होती. लेकिन जबरन जन्मभूमि छोड़नी पड़े, इससे बड़ा दर्द शायद ही कोई हो. आतंक की वजह से कश्मीरी पंडित विस्थापित तो जरूर हो गए लेकिन उन्हें अपने घर की याद अब भी सताती है. विस्थापित कश्मीरी पंडितों का वह दर्द 21 वर्षों बाद आज भी जिंदा है और वह अपने घर लौटना चाहते हैं.
पंडितों के बिना कश्मीर अधूरा
19 जनवरी 1990 यानी 21 साल पहले आज ही के दिन कश्मीर की घाटी में बसने वाले तीन लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडितों के परिवार को सीमा पार के आतंकवादियों की साजिश के चलते जबरन अपना घर-बार छोड़कर रातों रात भागना पड़ा था.
19 और 20 जनवरी 1990 की रात जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में पाकिस्तान की शह पर भेजे गए आतंकवादियों और कुछ स्थानीय नागरिकों की मिलीभगत से कश्मीर की घाटी में हजारों साल से बस रहे एक खास समुदाय को जल्द से जल्द घाटी में अपना घर-बार छोड़कर भाग जाने का फरमान सुना दिया गया. रात भर चली नारे बाजी और कत्लेआम इतना खौफनाक था कि जिसे जैसे ही मौका मिला और जो जिस हालत में था उसी में वहां से भाग निकला.
इसके चलते एक रात में कश्मीर की घाटी में बसने वाले तीन लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडितों को अपनी मिट्टी, अपना घर, पैसा, सोना-चांदी, अपना व्यापार सबकुछ छोड़कर जाना पड़ा था.
कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ हमारे सुरक्षा विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कश्मीरी पंडितों के पलायन करवाने में पाकिस्तान की साजिश थी. वह कश्मीर के कई इलाकों से ऐसे लोगों को हटाना चाहता था जो उसके लिए रुकावट पैदा कर सकते थे. उसने आपस में फूट कराई और कई इलाकों में दंगे भी करवाए.
जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान ने एक योजना बनाकर इस पूरी साजिश को अंजाम दिया और कश्मीरी पंडितों को पलायन करने के लिए मजबूर किया. लेकिन जानकारों का यह भी मानना है कि सब जानते हुए भी सरकार कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा नहीं दे पाई. यह हमारी सरकार की असफलता थी.
कश्मीरी पंडितों का मानना है कि उन्हें गिला पाकिस्तान और आतंकवादियों के साथ-साथ अपनी सरकार से भी है. क्योंकि संकट के समय इन लोगों के साथ न तो केंद्र सरकार खड़ी हुई और न ही राज्यसरकार.
कश्मीर की समस्या चाहे जब खत्म हो लेकिन कश्मीर की जमीन से जुदा लोगों की उम्मीद हर एक दिन हर एक नई सुबह के साथ शुरू होती है. लेकिन एक कभी न खत्म होने वाले इंतजार के साथ हर दिन चलती जाती है.

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