सर्वप्रथम तो न्यायलय के इस निर्णय में लोगों को विसंगतियां नजर आ रही हैं |क्या कवल इस लिए की यह निर्णय हिन्दुओं के पक्ष में आया है ? मैं अधिवक्ता तो नहीं हूँ अतः मुझे न्यायिक सूक्ष्मताओं का ज्ञान नहीं है परन्तु साड़ों से चली आ रही आस्थाएं क्या स्वयं ही इस बात साक्ष्य नहीं हैं ? क्या उस अस्जिद का नाम १९४० तक "मस्जिदे - जन्मस्थान " होना प्रमाण नहीं है ?क्या निकट भूत में बामियान का कार्य इस्लामिक आक्रान्ताओं के मूल चरित्र को नहीं दर्शाता है? इसके अतिरिक्त जब अयोध्या का मुस्लोमों के लिए कोई विशिस्ट धार्मिक महत्त्व नहीं है तो क्या अयोध्या हिन्दुओं को देना विसंगति है ?
दूसरी बात ,अगर सामाजिक सद्भाव बना हुआ है तो मैंने ऐसा लेख क्यूँ लिखा है ? कहाँ है सामाजिक सदभाव ?इस निर्णय के आने से पहले जो लोग सामाजिक सदभाव बनाये रखने की अपील कर रहे थे वो ही अब इस निर्णय में लोकतंत्र की पराजय देखने लगे हैं |और शान्ति ..............कहीं ते तूफान के पहले वाली तो नहीं है ?सरे कट्टर पंथी मुस्लिम ब्ल्लोगारों ने इस निर्णय की आलोचना करना प्रारंभ कर दिया है | और सरे प्रगतीशील और धर्मनिरपेक्ष लोग भी धीरे धीरे इसके विरोध में उतरने लगे हैं |पाकिस्तान तक में इस पर मुस्लिम एकत्रित होने लगे हैं | वैसे जो लोग सोचते हैं की हिन्दू मुस्लिम सदभाव जैसी कोई चीज वास्तविक दुनिया में होती है तो हमे कुछ उदहारण दें जब मुस्लिमो के अन्य धर्मावलम्बियों से अधिक शक्तिशाली होने के पश्चात भी शांति रही हो ? पूरे एशिया और यूरोप में ५०० वर्ष तक बहने वाली खून की नदियाँ ही क्या वो सदभाव हैं जिसके सम्मान की अपेक्षा हमसे की जा रही है ?
तीसरी बात , अयोध्या में मंदिर और मस्जिद दोनों बनाने की बात कह रहे हैं | कह रहे हैं की कुछ स्थान मुस्लिमों को बाबरी मस्जिद के लिए भी दे दिया जाये | ठीक है हम दे देंगे और देश के हर हिन्दू को हम मनाएंगे और उस मस्जिद के निर्माण के लिए चंदा एकत्रित करके हाँ भी हम देंगे | भव्य मस्जिद बनेगी | बस आप लोग हमे काबा के बगल में ५० ५० का स्थान दिला दीजिये मंदिर बनाने के लिए | उस नगर में तो अमुस्लिमों का प्रवेश भी वर्जित है तो हम अयोध्या में उनको त्रण की नोक के बरबा बोमी भी क्यूँ दें |
कुछ लोग कहेंगे की ऐसा करके हम उन मुस्लिमों का दिल जीत सकते हैं| तो आप उनका दिल अपने घर का एक तिहाई , राजघाट का एक तिहाई और तीन मोरती भवन का एक तिहाई देकर क्यूँ नहीं जीत लेते हैं ? इतिहास हमे सिखाता है की हम इतिहास से कुछ नहीं सीखते हैं और इसी लिए अपने आप को इतिहास दोहराता है | इतिहास साक्षी है इस बात का की मुस्लिमों का दिल जीतना संभव नहीं है क्यूँकी दिल तो उनका जीता जायेगा जिनके पास दिल होगा |तो क्या हमे पुनः वाही भूलें करनी चाहियें या इतिहास से कुछ सीखते हुए इस बार कुछ अलग करना चाहिए |
हमे लेशमात्र भी आश्चर्य नहीं होगा अगर एक तिहाई हिस्से को रख ने के बाद मुस्लिमों में "हस के लिया है एक तिहाई लड़ कर लेंगे दो तिहाई "की गोंज सुने देने लगे क्यूँ की यही मुस्लिमों का चरित्र है |और न्याय की भी यही मांग है की अब जबकि भारत की किसी विदेशी आक्रान्ता का शासन नहीं है तो हिंडून की समस्त संपत्तियां हिन्दुओं की वापस की जाएँ को आक्र्न्ताओं ने छीन ली थी |
आप सभी से अनुरोध है की इस पर अपने विचार दें पर दीपा शर्मा जी पर व्यक्तिगत टिप्पड़ी किये बिना |
और अंत में हिन्दू कुश पर्वत से हिन्दुमाहोदाधि तक का पूराक्षेत्र हिशों का था जिस पर मुस्लिम आक्रान्ताओं के कब्ज़ा किया था तो अब कम से कम हमारे पूजास्थल तो हमे वापस कर ही दिए जाने चाहिए |
हो न्याय अगर तो आधा दो ,और उसमे भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पांच ग्राम ,रखों अपनी धरती तमाम
हम वही ख़ुशी से खाएँगे,परिजन पर असि न उठाएंगे"
दुर्योधन वह भी दे न सका ,आशीष समाज की ले न सका
उल्टे हरी को बांधने चला ,जो था असाध्य साधने चला
जब नाश मनुज पर आता हैं ,पहले विवेक मर जाता हैं
"ज़ंजीर बढा अब साध मुझे ,हाँ हाँ दुर्योधन बाँध मुझे
ये देख गगन मुझमे लय हैं ,ये देख पवन मुझमे लय हैं
मुझमे विलीन झंकार सकल ,मुझमे लय हैं संसार सकल
अमरत्व फूलता हैं मुझमे ,संसार झूलता हैं मुझमे
उदयाचल मेरे दीप्त भाल ,भूमंडल वक्षस्थल विशाल
भुज परिधि बांध को घेरे हैं,मैनाक मेरु पग मेरे हैं
दीप्ते जो ग्रह नक्षत्र निकर ,सब हैं मेरे मुख के अन्दर
दृक हो तो दृश्य अखंड देख,मुझमे सारा ब्रह्माण्ड देख
चराचर जीव जग क्षर-अक्षर ,नश्वर मनुष्य सृजाती अमर
शत कोटि सूर्य शत कोटि चन्द्र ,शत कोटि सरित्सर सिन्धु मंद्र
शत कोटि ब्रह्मा विष्णु महेश ,शत कोटि जलपति जिष्णु धनेश
शत कोटि रुद्र शत कोटि काल ,शत कोटि दंड धर लोकपाल
ज़ंजीर बढा कर साध इन्हें ,हाँ हाँ दुर्योधन बाँध इन्हें
भूतल अतल पाताल देख ,गत और अनागत काल देख
यह देख जगत का आदि सृजन ,यह देख महाभारत का रण
मृतकों से पटी हुई भू हैं ,पहचान कहाँ इसमें तू हैं !!!
और अगर या नहीं दिया तो हमे कहना होगा
तो ले अब मैं भी जाता हूँ ,अंतिम संकल्प सुनाता हूँ
याचना नहीं अब रण होगा ,जीवन जय या की मरण होगा
दूसरी बात ,अगर सामाजिक सद्भाव बना हुआ है तो मैंने ऐसा लेख क्यूँ लिखा है ? कहाँ है सामाजिक सदभाव ?इस निर्णय के आने से पहले जो लोग सामाजिक सदभाव बनाये रखने की अपील कर रहे थे वो ही अब इस निर्णय में लोकतंत्र की पराजय देखने लगे हैं |और शान्ति ..............कहीं ते तूफान के पहले वाली तो नहीं है ?सरे कट्टर पंथी मुस्लिम ब्ल्लोगारों ने इस निर्णय की आलोचना करना प्रारंभ कर दिया है | और सरे प्रगतीशील और धर्मनिरपेक्ष लोग भी धीरे धीरे इसके विरोध में उतरने लगे हैं |पाकिस्तान तक में इस पर मुस्लिम एकत्रित होने लगे हैं | वैसे जो लोग सोचते हैं की हिन्दू मुस्लिम सदभाव जैसी कोई चीज वास्तविक दुनिया में होती है तो हमे कुछ उदहारण दें जब मुस्लिमो के अन्य धर्मावलम्बियों से अधिक शक्तिशाली होने के पश्चात भी शांति रही हो ? पूरे एशिया और यूरोप में ५०० वर्ष तक बहने वाली खून की नदियाँ ही क्या वो सदभाव हैं जिसके सम्मान की अपेक्षा हमसे की जा रही है ?
तीसरी बात , अयोध्या में मंदिर और मस्जिद दोनों बनाने की बात कह रहे हैं | कह रहे हैं की कुछ स्थान मुस्लिमों को बाबरी मस्जिद के लिए भी दे दिया जाये | ठीक है हम दे देंगे और देश के हर हिन्दू को हम मनाएंगे और उस मस्जिद के निर्माण के लिए चंदा एकत्रित करके हाँ भी हम देंगे | भव्य मस्जिद बनेगी | बस आप लोग हमे काबा के बगल में ५० ५० का स्थान दिला दीजिये मंदिर बनाने के लिए | उस नगर में तो अमुस्लिमों का प्रवेश भी वर्जित है तो हम अयोध्या में उनको त्रण की नोक के बरबा बोमी भी क्यूँ दें |
कुछ लोग कहेंगे की ऐसा करके हम उन मुस्लिमों का दिल जीत सकते हैं| तो आप उनका दिल अपने घर का एक तिहाई , राजघाट का एक तिहाई और तीन मोरती भवन का एक तिहाई देकर क्यूँ नहीं जीत लेते हैं ? इतिहास हमे सिखाता है की हम इतिहास से कुछ नहीं सीखते हैं और इसी लिए अपने आप को इतिहास दोहराता है | इतिहास साक्षी है इस बात का की मुस्लिमों का दिल जीतना संभव नहीं है क्यूँकी दिल तो उनका जीता जायेगा जिनके पास दिल होगा |तो क्या हमे पुनः वाही भूलें करनी चाहियें या इतिहास से कुछ सीखते हुए इस बार कुछ अलग करना चाहिए |
हमे लेशमात्र भी आश्चर्य नहीं होगा अगर एक तिहाई हिस्से को रख ने के बाद मुस्लिमों में "हस के लिया है एक तिहाई लड़ कर लेंगे दो तिहाई "की गोंज सुने देने लगे क्यूँ की यही मुस्लिमों का चरित्र है |और न्याय की भी यही मांग है की अब जबकि भारत की किसी विदेशी आक्रान्ता का शासन नहीं है तो हिंडून की समस्त संपत्तियां हिन्दुओं की वापस की जाएँ को आक्र्न्ताओं ने छीन ली थी |
आप सभी से अनुरोध है की इस पर अपने विचार दें पर दीपा शर्मा जी पर व्यक्तिगत टिप्पड़ी किये बिना |
और अंत में हिन्दू कुश पर्वत से हिन्दुमाहोदाधि तक का पूराक्षेत्र हिशों का था जिस पर मुस्लिम आक्रान्ताओं के कब्ज़ा किया था तो अब कम से कम हमारे पूजास्थल तो हमे वापस कर ही दिए जाने चाहिए |
हो न्याय अगर तो आधा दो ,और उसमे भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पांच ग्राम ,रखों अपनी धरती तमाम
हम वही ख़ुशी से खाएँगे,परिजन पर असि न उठाएंगे"
दुर्योधन वह भी दे न सका ,आशीष समाज की ले न सका
उल्टे हरी को बांधने चला ,जो था असाध्य साधने चला
जब नाश मनुज पर आता हैं ,पहले विवेक मर जाता हैं
"ज़ंजीर बढा अब साध मुझे ,हाँ हाँ दुर्योधन बाँध मुझे
ये देख गगन मुझमे लय हैं ,ये देख पवन मुझमे लय हैं
मुझमे विलीन झंकार सकल ,मुझमे लय हैं संसार सकल
अमरत्व फूलता हैं मुझमे ,संसार झूलता हैं मुझमे
उदयाचल मेरे दीप्त भाल ,भूमंडल वक्षस्थल विशाल
भुज परिधि बांध को घेरे हैं,मैनाक मेरु पग मेरे हैं
दीप्ते जो ग्रह नक्षत्र निकर ,सब हैं मेरे मुख के अन्दर
दृक हो तो दृश्य अखंड देख,मुझमे सारा ब्रह्माण्ड देख
चराचर जीव जग क्षर-अक्षर ,नश्वर मनुष्य सृजाती अमर
शत कोटि सूर्य शत कोटि चन्द्र ,शत कोटि सरित्सर सिन्धु मंद्र
शत कोटि ब्रह्मा विष्णु महेश ,शत कोटि जलपति जिष्णु धनेश
शत कोटि रुद्र शत कोटि काल ,शत कोटि दंड धर लोकपाल
ज़ंजीर बढा कर साध इन्हें ,हाँ हाँ दुर्योधन बाँध इन्हें
भूतल अतल पाताल देख ,गत और अनागत काल देख
यह देख जगत का आदि सृजन ,यह देख महाभारत का रण
मृतकों से पटी हुई भू हैं ,पहचान कहाँ इसमें तू हैं !!!
और अगर या नहीं दिया तो हमे कहना होगा
तो ले अब मैं भी जाता हूँ ,अंतिम संकल्प सुनाता हूँ
याचना नहीं अब रण होगा ,जीवन जय या की मरण होगा
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