Saturday, 7 December 2013

महात्मा गांधी : अहिंसा का पुजारी या 1919 के हिन्दुओं के नरसंघार का नेतृत्वकर्ता

नकली महात्मा का असली चेहरा


मोहनदास करमचन्द्र गाँधी (कुछ के लिए महात्मा ) , उसे आधिकारिक रूप से तो भारत का राष्ट्रपिता कहा जाता है परन्तु उस व्यक्ति ने भारत की कितनी और किस तरह से सेवा की थी इस सम्बन्ध में लोग चर्चा करने से भी डरते हैं | गांधी के अनुयायी गांधी का असली चेहरा देखना ही नहीं चाहते हैं क्यूँकी वो इतना ज्यादा भयानक है उसे देखने के लिए गांधीवादियों को सहस जुटाना होगा | सभी गांधीवादी , महात्मा गांधी (??) को अहिंसा का पुजारी मानते हैं जिसने कभी भी किसी तरह की हिंसा नहीं की परन्तु वास्तविकता तो यह है की बीसवी सदी के सबसे पहले हिन्दुओं के नरसंघार का नेतृत्व इसी मोहनदास करमचन्द्र गांधी ने किया था |



मैं जिस नरसंघार के बारे में बता रहा हूँ वो 1919 में हुआ था और इस घटना को इतिहास की किताबों (जो की कम्युनिस्टों ने ही लिखी हैं ) खिलाफत आन्दोलन के नाम से पुकारा जाता है और ये भी पढाया जाता है की ये खिलाफत आन्दोलन राष्ट्रीय भावनाओं का उभार था जिसमे देश के हिन्दुओं और मुसलमानों ने कंधे से कन्धा मिलकर भाग लिया था परन्तु इस बारे कुछ नहीं बताया जाता है एक विदेशी शासन और वहां की सत्ता का संघर्ष का संघर्ष भारत के राष्ट्रीय भावनाओं का उभार कैसे हो सकता है ? खिलाफत आन्दोलन एक विशुद्ध सांप्रदायिक इस्लामिक चरमपंथी आन्दोलन था जो की इस भावना से संचालित था की पूरी दुनिया इस्लामिक और गैर इस्लामिक दो तरह के राष्ट्रों में बटी हुई है और पूरी दुनिया के मुस्लिमों ने, तुर्की के खलीफा के पद को समाप्त किये जाने को गैर इस्लामिक देश के इस्लामिक देश पर आक्रमण के रूप  में देखा था | खिलाफत आन्दोलन एक इस्लामक आन्दोलन था जो की मुसलमानों के द्वारा गैर मुस्लिमों के विरुद्ध शुरू किया गया था और इसे भारत में अली बंधुओं ने नेतृत्व प्रदान किया था |

मोहनदास करमचन्द्र गांधी जो की उस समय कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे , उसने इस खिलाफत आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की | ध्यान रहे की खिलाफत आन्दोलन अपने प्रारंभ से ही एक हिंसक आन्दोलन था और इस अहिंसा के कथित पुजारी ने इस हिंसक आन्दोलन को अपना समर्थन दिया (ये वही अहिसा का पुजारी है जिसने चौरी चौरा में कुछ पुलिसकर्मियों के मरे जाने पर अपना आद्नोलन वापस ले लिया था ) और इस गम्न्धी के समर्थन का अर्थ कांग्रेस का समर्थन था | इस खिलाफत आन्दोलन के प्रारंभ से इसका स्वरूप हिन्दुओं के विरुद्ध दंगों का था और गांधी ने उसे अपना नेतृत्व प्रदान करके और अधिक व्यापक और विस्तृत रूप दे दिया |

इस अहिसा के पुजारी की महत्वकांक्षा (या कुछ छिपे हुए अन्य स्वार्थ या कारन) हजारों हजार हिन्दुओं के लाशों पर चढ़ कर राष्ट्र का सबसे बड़ा नेता बनाने की थी और इस लिए इसने मुस्लोमों के द्वारा किये गए इस हिन्दूनरसंघर का भी नेतृत्व कर दिया ताकि मुस्लिम खुश हो जाएँ परन्तु यही नहीं था जो इसने किया जब अली भाइयों ने अफगानिस्तान के अमीर को भारत पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया था तब इस कथित अहिंसक महात्मा ने कहा था"यदि कोई बाहरी शक्ती इस्लाम की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए और न्याय दिलाने के लिए आक्रमण करती है तो वो उसे वास्तविक सहायता  न भी दें तो उसके साथ उनकी पूरी सानुभूति रहेगी "(गांधी सम्पूर्ण वांग्मय - १७.५२७- 528)| अब यह तो स्पस्ट ही है की वो आक्रमणकर्ता हिंसक ही होता और इस्लाम की परिपाटी के अनुसार हिन्दुओं का पूरी शक्ती के साथ कत्लेआम भी करता | तो क्या ऐसे आक्रमण  का समर्थन करने वाला व्यक्ती अहिंसक कहला सकता है ??


बात इतने पर भी ख़तम नहीं होती है , जब अंग्रेजों ने पूरी दुनिया में इस आन्दोलन को कुचल दिया और खिलाफत आन्दोलन असफल हो गया तो भारत के मुसलमानों ने क्रोध में आकर पूरी शक्ती से हिन्दुओं की हत्यां करनी शुरू कर दी और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव मालाबार क्षेत्र में देखा गया था | जब वहां पर मुसलमानों द्वरा हिन्दुओं की हत्याएं की जा रही थीं तब इस मोहनदास करमचन्द्र गांधी ने कहा था ".अगर कुछ हिन्दू मुसलमानों के द्वारा मार भी दिए जाते हैं तो क्या फर्क पड़ता है ?? अपने मुसलमान भाइयों के हांथों से मरने पर हिन्दुओं को स्वर्ग मिलेगा ...." |

मुझे लगता है की अब समय आ गया है की हम एक बार पुनः सभी चीजों को देखें और इस बात का निर्णय करें की क्या वास्तव में यह व्यक्ती "अहिंसा का पुजारी " और "देशभक्त" कहलाने के योग्य है या इसको देखभक्त कहना देशभक्तों का अपमान है ??

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