Saturday, 7 December 2013

गोडसे या गाँधी : महात्मा कौन ?

नाथूराम विनायक गोडसे या मोहन दास करमचंद गांधी , इन दोनों में से महात्मा किसे कहना चाहिए और जिसे भी कहें उसे क्यूँ कहना चाहिए ? स्वाभाविक ही जिसके कार्य महात्मा जैसे उसे ही महात्मा कहा जाना चाहिए आज तक कार्यों पर चर्चा किये बिना ही गाँधी को महात्मा कहा जाता रहा है | और मोहन दास करमचंद गाँधी के समर्थक चर्चा करना ही नहीं चाहते हैं | ये लोग इस पर तो चर्चा करते हैं  की राम मर्यादा पुषोत्तम अनंत कोटि ब्रह्माण्ड  नायक थे या नहीं ; ये लोग इस पर भी चर्चा करते हैं की कृष्ण योगीश्वर थे या नहीं ; ये लोग इस पर भी चर्चा करते हैं की शिव सम्पूर्ण जगत का कल्याण करने वाले महादेव हैं या नहीं ; ये लोग इस पर भी चर्चा करते हैं की महिषासुर और महिषासुरमर्दिनी में से कौन सही था और कौन गलत ? हमें कोई भय भी नहीं ऐसी चर्चाओं से क्यूँ की सत्य को भय नहीं होता है |परन्तु जैसे ही गाँधी की बात आती है ये लोग चर्चाओं को नकारने लगते हैं | क्यूँ ? किस भेद के खुलने का भय है ? किस सत्य के सामने आने का भय है ?क्या हिया जो छिपाया जाता रहा है ?क्यूँकी कुछ तो है जो की मोहनदास करमचंद गाँधी के समर्थक झूठ बोलते हैं और अब हम उन्ही झूठों को देखने जा रहे हैं | आइये  गोडसे जी और गाँधी जी के कायों का विश्लेषण करें |


प्रथम प्रश्न गोडसे जी के गाँधी-वध किया था क्या वह उचित था ? हमारे दर्शन में तो किसी भी प्राणी की भी हिंसा का निषेध है फिर किसी संत की हत्या ?? परन्तु यह भी उचित है जब की संत कालनेमि जैसा हो ?और गाँधी और कालनेमि में तो कोई अंतर नहीं दीखता , कथन से धर्म का कार्य परन्तु वास्तव में तो दोनों असुर -दल की सहायता ही कर रहे थे और उस स्थिति में तो गाँधी वध परम पवित्र कर्तव्य था |

वास्तव में गाँधी के आचरण को समझने से पहले ये समझना पड़ेगा की गाँधी राष्ट्रीय स्तर के नेता बने कैसे ? गाँधी भारत की जमीन से कटे हुए धनी परिवार में रहे थे परन्तु बैरिस्टर बन जाने के बाद भी वो वकालत  में असफल हो चुके थे |जब गाँधी ने राजनीती में प्रवेश किया उस समय बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे | तिलक जी की म्रत्यु के बाद गाँधी को राष्ट्रीय आन्दोलन का नेता बनने की हडबडाहट थी और इसी हडबडाहट में उन्होंने मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति की शुरुवात कर दी खिलाफत आन्दोलन को अपना तथा कांग्रेस का समर्थन देकर और केवल समर्थन ही नहीं अपितु यहाँ तक भी कह कर की "अगर खिलाफत  के लिए आवश्यकता पड़ी तो मैं सवारी की मांग भी छोड़ने के लिए तैयार हूँ |"अब जो नेता बना ही हो मुस्लिम तुष्टिकरण के बल पर उससे किसी प्रकार के राष्ट्रवाद की अपेक्षा की ही नही जा सकती है | मोहनदास करमचंद गाँधी पुरे भारतीय समाज का एक मात्र नेता बनने केलिए मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे रहे और इसे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रयासों का नाम देते रहे | गंशी जी का यह 'पागलपन' उनके पुरे जीवन भर  में चलता रहा था |यह 'पागलपन'शब्द मेरा नहीं है ; बाबा साहब भीम राव आंबेडकर ने कहा था "कोई भी स्वस्थ मष्तिष्क का व्यक्ति हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए उस हद तक नहीं बढ़ सकता है जिस हद तक गांधी बढ़ गए थे |"


गाँधी और गोडसे में से कौन संत था और किस भाँती का संत था इस बात का निर्धारण करने के लिए हमें शंत्रों से ही पता करना पड़ेगा की संत कैसे होते हिं और देखना पड़ेगा की शास्त्रों में संतों के क्या लक्षण बताये गए हैं  और उसी के अनुसार यह निर्धारित करना पड़ेगा की गांधी संत थे या गोडसे ? भागवत महापुराण में कपिल मुनि अपनी माता देहुती को संत के लक्षण बताते हुए कहते हैं  की

तितिक्षवः कारुणिकाः सुहृदः सर्वदेहिनाम्। अजातशत्रवः शान्ता साधवः साधुभूषणाः

संत वह है जिसमे सहन करने की शक्ति हो , करुना हो जिसका कोई शत्रु न हो और और जो शांत रहता हो|आइये देखते हैं  की इस परिभाषा के अनुसार कौन संत है और कौन असंत  ?


संत में सबसे पहले तो सहनशीलता होनी चाहिए |जब एक बार कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में गाँधी समर्थित उम्मीदवार पराजित हो गया था तब गाँधी जी ने क्रोध में आकर कहा था की यह मेरी पराजय है और मैं कांग्रेस छोड़ दूंगा | ऐसा क्रोधी और अभिमानी व्यक्ति संत ?ये तो असुरों के लक्षण हैं |जबकि गोडसे जी ने तो न्यायलय के अन्दरबहुत सी अपमानजनक और आक्रोशपूर्ण बातों  का भी शांतिपूर्ण उत्तर दिया था |

संत में करुना होनी चाहिए |नवम्बर १९४८ की एक अर्द रात जब की बारिश भी हो रही थी , इसी गाँधी  ने दिल्ली की जमा मस्जिद में शरण लिए हुए हिन्दू शरणार्थियों को अनशन कर के बहार निकलवा दिया था |उन शरणार्थियों में कुछ तो तीन-चार महीने की आयु के बच्चे भी थे |ये था गाँधी में की करुना का स्तर जबकि गोडसे जी ने जब उन्ही शरणार्थियों की दुर्गति देखि तो अपनी , अपने परिवार की और अपने सम्मान तक की चिंता न करते हुए गाँधी वध कर दिया  था |

इसके बाद संत का गुण है की उसका कोई शत्रु न हो और गाँधी का तो हर वह व्यति शत्रु था जो उनकी एक भी बात न माने , भगत सिंह उनके शत्रु - वीर सावरकर उनके शत्रु  और तो और दोनों विश्व युद्धों में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने वाले देश भी उनके शत्रु जबकि गोडसे जी ने तो न्यायलय में ही कहा था की मेरी गाँधी से कोई शत्रुता नहीं थी |

तो इन बातों से आप स्वयं निर्धारित करें की गंशी जी और गोडसे जी में से संत कौन था और असंत कौन था ?

मेरे अनुसार तो केवल असंत ही नहीं गंशी तो शायद उसके भी आगे बहुत कुछ थे जिसके कारन एक शांत स्वभाव के व्यक्ति हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी को शास्त्र उठाने पड़े |इस घटना से पहले  तो गोडसे जी हमेशा एक अत्यंत शांत -मिलनसार और परोपकारी प्रकृति के व्यक्ति थे ; एक समाचार  पत्र के संपादक थे और धर्म ग्रंथों के अध्ययन में समय बिताने वाले थे परन्तु उन्ही ग्रंथों से उनको यह ज्ञान भी मिला की आवश्यकता पड़ने पर शास्त्र छोड़कर शस्त्र भी उठाने चाहिए और यह पूर्णतयः शास्त्रोचित भी है |

कुछ गाँधी समर्थक कह सकते हैं की गाँधी जी तो गो-ग्राम के समर्थक थे उससे देश का विकास होता | गाँधी जी के विचारों के बारे में रंचारित मानस की एक पंक्ति उचित बैठती है "मन मलीन तन सुन्दर कैसे ;विष रस बहा कनक घट जैसे इसी भाति गाँधी  जी के विचार देखने में ही अच्छे लगते थे एक बार जब गोहत्या को रोकने के कारन हिन्दू-मुस्लिम विवाद हो गया था तब गाँधी जी ने कहा था ".....अगर मुसलमान गे को मरते हैं तो उतम विरोध में अपने भी प्राण दे दो परन्तु मुसलमानों पर हाँथ न उठाओ ..."अर्थात गाय तो मरे ही साथ में गोपालक - गोरक्षक भी मारे जाय |

कुछ लोग कहेंगे की गंशी एक सच्चे वैष्णव हिन्दू थे वो हमेह्सा राम और हरी भजन गाते थे |विष्णु पुराण में लिखा है "जो जीवों की हिंसा करता है कटु भाषण करता है साधुजनों का अपकार करता है वो भगवन का भक्त हो ही नहीं सकता है " |तो भगवन का जो भक्त नहीं हो सकता  है  वो संत कैसे हो सकता है ?

अंत में यह की अगर गाँधी और गोडसे दोनों की मृत्यु हो चुकी है  तो इस सब विचार का क्या प्रयोजन ?लोग पूछते हैं  की हमारे देश की सरकार कायरों की तरह क्यूँ व्यवहार कर रही है ; अब अगर संसद के प्रांगन  में गाँधी की प्रातिमा होगी तो क्या होगा? इन्दोनेश्निया की मुद्रा में भगवन गणेश के चित्र ने उनका  आर्थिक संकट दूर कर दिया था तो भारत की मुद्रा में गाँधी का चित्र किन किन अपशकुनो का कारन होगा आप स्वयं सोचे ; शायद इसी लिए भारत आज सबसे ज्यादा गोमांस निर्यात करने वाला और गोबर आयत करने वाला राष्ट्र है |भारत की गली -गली नगर , चौराहे पर गंगंशी  की प्रतिमा लगाने के बाद अगर आप आशा करते है की हमारे देशकी युवा पीढ़ी राष्ट्रभक्त -चरित्रवान -साहसी हो तो आप को एक बार पुनः सोचना चाहिए की क्या यह संभव है ? यदि गाँधी नाम का विष समाज में हवा में और पानी में बिखरा है तो राष्ट्र स्वस्थ कैसे रह सकता है ?

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